दूरदर्शन के पचास साल इसी १५ सितंबर को पूरे हो रहे हैं। ऐसे में इतने बड़े संस्थान के स्वर्ण जयंती समारोह के लिए आयोजन भी उतना ही बड़ा होना चाहिए। सो, कल यानी ११ अगस्त से एक कार्यक्रम श्रृंखला की शुरुआत हुई है और सही ही इसका उद्घाटन कार्यक्रम रहमान साहब के कार्यक्रम से हुआ।
बहरहाल, रहमान अनप्लग्ड की शुरुआत बेहतर रही।
कैलाश खेर अपने पूरे रंग में नजर आए। और जागो से शुरु हुआ उनका परफॉरमेंस आठ गानों तक चलता रहा। ये जो देश है.. स्वदेश से, कैलाशा के गैने, सैंया, मरम्मत मुक़द्दर की कर दे मौला। श्रोताओं के लिए गज़ब का अनुभव था।
फिर आए शिवमणि. और इस ड्रमर ने पहले जालियां और सूटकेस बजाया। शिवमणि को बहुत दिनों से देखता आ रहा हूं लेकिन उनकी हर प्रस्तुति पहले से अलग होती है। शिवमणि के ड्रम को सुनना अद्भुत है। उंगलियां ही सुमिरनी बना ली हैं मणि ने। मणि तो सचमुच मणि हैं भारत मां की ताज के ।
फिर आए हरिहरन...तू ही रे.. से शुरु किया। सूदिंग कहते हैं ना जिसे अंग्रेजी में, उनकी आवाज़ से कुछ वैसा ही लगता है। मखमली.. या कहें शहद टपकती-सी आवाज़। कैलाश खेर की आवाज़ मे अगर पहाड़ी नदी सी चंचलता और जलप्रपात सी ऊंचाई है तो हरिहरन की आवाज में वह नदी मैदानी हिस्से में कलकल करती बहती लगी। गहराई और वॉल्यूम के लिहाज से भी।
आखिर में, हरिहरन ने रोजा का भारत हमको जान से प्यारा है गाया। साधना सरगम ने किसना फिल्म का भजन गुगुनाया ..बस हो गया खत्म। रहमान पता नहीं क्यों गाने स्टेज पर नहीं आए। जय हो..तो जाने दीजिए वंदे मातरम् भी नहीं गाया। हम इंतजार करते रहे। वैसे रहमान कंसर्ट के दौरान पियानो बजाते रहे लेकिन हम तो उनकी जादुई आवाज़ सुनने के लिए बेताब थे।
बड़ी निराशा हुई। वह निराशा अभी तक तारी है। वैसे रात में हम घर गए १२ बजे के आसपास तो वंदे मातरम प्लेयर पर चला कर सुन ज़रुर लिया, लेकिन निराशा कम नहीं हुई। वो इसलिए कि रहमान की आवाज़ में लाइव सुनना अलग मज़ा देता और हम रहमान के प्रशंसकों में से एक हैं।
चलिए फिर कभी सही..।
3 comments:
Hum bhee sun kar dekhte hain.
{ Treasurer-S, T }
रहमान के पक्के वाले फेन हम भी है .साथिया..ओर वन्देमातरम में नुसरत साहब के साथ उनकी जुगलबंदी .लाजवाब है ..
sunn ke theek to nahi lag raha fir bhi.. shayad unhey bhi laga TRP yaha nahi milney waali..[:P][:)]
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