पिछले दिनों मेरी एक रिपोर्ट आई थी। बुंदेलखंड पर। एक बार जब रिपोर्ट दिखा चुका, तो दोबारा लिखने की जरुरत क्या है..। सच तो ये है कि टीवी पर हमने जिताना दिखाया, उससे कहीं ज्यादा दिलो-दिमाग पर छप गया। टीवी की अपनी मजबूरियां हैं। जितने विजुअल्स हैं, उतना ही कह सकते हैं।
बहुत पहले एक मुहावरा सिखाया गया था- एक तस्वीर हजार शब्दों से भी ज्यादा बयां करती है। लेकिन बावजूद इस मुहावरे के, यह भी सच है कि तस्वीरों की अपनी एक सीमा होती है।
जितना आपने कैमरे में क़ैद किया, जिस वक्त कैद किया...उसके अलावा उसके आगे-पीछे का सच मामूली होकर रह जाता है। बहरहाल, कहने को बहुत कुछ है..।
18 जून को बॉस ने कहा कि एक रिपोर्ट बनाओ, चाहो तो दो एपिसोड बनाना। बॉस को मामले की गंभीरता का ज्यादा आइडिया था नहीं...कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है मामले का। आगे देख लो..। कमरे से निकलता ही कि रोककर कहा, सुना है बारिश नहीं होती उधर..खेतों मे दरारे पड़ी हैं। उसके शॉट जरुर ले आना।
एक पत्रकार की हैसियत से मेरी हसरत थी कि कुछ ऐसी रिपोर्टिंग करूं..जो ज़मीनी हो। कुछ ऐसी कसमसाहट थी अंदरखाने कि, लोगों से जुड़े मुद्दे उठा सकूं।
19 जून को मैं लखनऊ के लिए निकला। वहां से मुझे आशुतोष शुक्ला को साथ लेना था। वहां, शुक्ला जी मेरे ही होटल के कमरे में आकर जम गए। तत्वसेवन के लिए। बाद में, रिपोर्ट के बाद उन्होंने मुझे कितने मानसिक कष्ट दिए, इसका जिक्र बाद में।
20 की सुबह, गाड़ी मिलने में काफी जद्दोज़हद के बाद मैं टीम के साथ बांदा के लिए रवाना हुआ। मेरी कैमरा टीम इलाहाबाद से आकर मेरे साथ हो चुकी थी। लखनऊ से निकलते-निकलते मॉनसून की ऐसी झड़ी लगी कि लगा आज ही बरस लेंगे बदरा...सारी जमा पानी आज ही उड़ेल कर मानेंगे।
कानपुर पार कर गए, बारिश ने फिर भी पीछा नहीं छोड़ा।
सारे रास्ते दिमाग में यही चलता रहा कि आखिर कहां से शुरु करुं और किस चीज से शुरु करूं। शाम होते-होते बांदा पहुंच गया। सुमन मिश्रा (हमारे स्थानीय संवाददाता) ने हमारा स्वागत किया।
सुमन मिश्रा को मंदिरों मे दर्शन का बडा़ शौक है। वह अड़ गए की भारी-भरकम नाश्ते के बाद वह हमें पहाड़ी पर बनी काली माई का मंदिर दिखाकर ही मानेंगे।
हम तो ठहरे नास्तिक, उधर शुक्ला जी भी मय के आगे भगवान को भी कुछ नहीं गिनते...ड्राइवर भी थका हुआ था, कैमरा मैन भी कन्यामित्र से बातचीत में व्यस्त...उधर मिश्रा जी हमें आस्तिक बनाए जाने पर उतारु थे।
बहरहाल, हमने ही मना किया। मंदिर से पीछी तो छूट गया..रात में खाकर सोए...दिमाग में इस योजना के साथ कि कल करना क्या है।
सुमन मिश्रा के यहां ही पुष्पेन्द्र भाई से मुलाकात हो गई। वैसे कुमार आलोक ने भी उनका नंबर हमें दे दिया था। पुष्पेन्द्र भाई के बारे में विस्तार से फिर कभी..। लेकिन पहले ही दिन शूट पर जाने का उनका दिया वक्त हमारी पकड़ से छूट गया। सात बजे उनसे मिलना था और देर रात सोई टीम में से कोई भी, ( मैं तो शाश्वत कुंभकर्ण हूं) आठ बजे से पहले जाग नहीं पाया।
...और जब जागे तो देखा, आसमान में काले-काले बादल छाए हैं। बांदा में दुर्ळभ बारिश होने वाली थी। कैमरामैन बोला, काम कैसे होगा..। हमने कहा धीरज धरो..।
...जारी
बहुत पहले एक मुहावरा सिखाया गया था- एक तस्वीर हजार शब्दों से भी ज्यादा बयां करती है। लेकिन बावजूद इस मुहावरे के, यह भी सच है कि तस्वीरों की अपनी एक सीमा होती है।
जितना आपने कैमरे में क़ैद किया, जिस वक्त कैद किया...उसके अलावा उसके आगे-पीछे का सच मामूली होकर रह जाता है। बहरहाल, कहने को बहुत कुछ है..।
18 जून को बॉस ने कहा कि एक रिपोर्ट बनाओ, चाहो तो दो एपिसोड बनाना। बॉस को मामले की गंभीरता का ज्यादा आइडिया था नहीं...कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है मामले का। आगे देख लो..। कमरे से निकलता ही कि रोककर कहा, सुना है बारिश नहीं होती उधर..खेतों मे दरारे पड़ी हैं। उसके शॉट जरुर ले आना।
एक पत्रकार की हैसियत से मेरी हसरत थी कि कुछ ऐसी रिपोर्टिंग करूं..जो ज़मीनी हो। कुछ ऐसी कसमसाहट थी अंदरखाने कि, लोगों से जुड़े मुद्दे उठा सकूं।
19 जून को मैं लखनऊ के लिए निकला। वहां से मुझे आशुतोष शुक्ला को साथ लेना था। वहां, शुक्ला जी मेरे ही होटल के कमरे में आकर जम गए। तत्वसेवन के लिए। बाद में, रिपोर्ट के बाद उन्होंने मुझे कितने मानसिक कष्ट दिए, इसका जिक्र बाद में।
20 की सुबह, गाड़ी मिलने में काफी जद्दोज़हद के बाद मैं टीम के साथ बांदा के लिए रवाना हुआ। मेरी कैमरा टीम इलाहाबाद से आकर मेरे साथ हो चुकी थी। लखनऊ से निकलते-निकलते मॉनसून की ऐसी झड़ी लगी कि लगा आज ही बरस लेंगे बदरा...सारी जमा पानी आज ही उड़ेल कर मानेंगे।
कानपुर पार कर गए, बारिश ने फिर भी पीछा नहीं छोड़ा।
सारे रास्ते दिमाग में यही चलता रहा कि आखिर कहां से शुरु करुं और किस चीज से शुरु करूं। शाम होते-होते बांदा पहुंच गया। सुमन मिश्रा (हमारे स्थानीय संवाददाता) ने हमारा स्वागत किया।
सुमन मिश्रा को मंदिरों मे दर्शन का बडा़ शौक है। वह अड़ गए की भारी-भरकम नाश्ते के बाद वह हमें पहाड़ी पर बनी काली माई का मंदिर दिखाकर ही मानेंगे।
हम तो ठहरे नास्तिक, उधर शुक्ला जी भी मय के आगे भगवान को भी कुछ नहीं गिनते...ड्राइवर भी थका हुआ था, कैमरा मैन भी कन्यामित्र से बातचीत में व्यस्त...उधर मिश्रा जी हमें आस्तिक बनाए जाने पर उतारु थे।
बहरहाल, हमने ही मना किया। मंदिर से पीछी तो छूट गया..रात में खाकर सोए...दिमाग में इस योजना के साथ कि कल करना क्या है।
सुमन मिश्रा के यहां ही पुष्पेन्द्र भाई से मुलाकात हो गई। वैसे कुमार आलोक ने भी उनका नंबर हमें दे दिया था। पुष्पेन्द्र भाई के बारे में विस्तार से फिर कभी..। लेकिन पहले ही दिन शूट पर जाने का उनका दिया वक्त हमारी पकड़ से छूट गया। सात बजे उनसे मिलना था और देर रात सोई टीम में से कोई भी, ( मैं तो शाश्वत कुंभकर्ण हूं) आठ बजे से पहले जाग नहीं पाया।
...और जब जागे तो देखा, आसमान में काले-काले बादल छाए हैं। बांदा में दुर्ळभ बारिश होने वाली थी। कैमरामैन बोला, काम कैसे होगा..। हमने कहा धीरज धरो..।
...जारी
4 comments:
अगली कडी का इन्तजार रहेगा,
नीरज रोहिल्ला
रोचक ...
जमीन से जुडी चीज़े सच कहूँ दूरदर्शन ओर लोक सभा चैनल ही दिखाता है .....अच्छा है गर तुम्हारे भीतर ये आग है ....खुदा इसे जलाए रखे !अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा....एक बात ओर दूस्र्दर्शन ओर लोकसभा वालो को कहे कुछ अच्छी चीजों को यू ट्यूब पर भी डाल कर रखे भले ही उनकी साईट पर ....कई बार रिकमेंड करने का मन होता है
बुंदेलखंड की हालत अपनी आँखों से देखि थी यकीन नहीं हुआ भारत का ही हिस्सा है ...अगली कड़ी का इंतज़ार
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