Wednesday, September 12, 2012

पुस्तक समीक्षाः भारतः गांधी के बाद

अकादमिक रूप से इतिहास को अगर कोई पढ़ना चाहे, तो सारी पाठ्य-पुस्तकें सन 47 में यूनियन जैक उतारकर और लाल किले पर तिरंगा लहरा कर चुप बैठ जाती हैं। रामचंद्र गुहा की किताब इस आजादी के दौर से शुरु होकर आज तक की कहानी को विश्वसनीय तरीके से बयान करती है।

रामचंद्र गुहा ने जो किताब मूल रूप से अंग्रेजी में लिखी थी, उसका हिंदी अनुवाद नहीं,रूपांतर किया है सुशांत झा ने। मैं इस किताब को अनुवाद नहीं, रूपांतर इसलिए कह रहा हूं क्योंकि अनुवाद जैसी बोझिलता किताब के किसी अनुच्छेद में दिखती नहीं।
इस किताब का हिंदी रूपांतर सुशांत झा ने किया है।


मूल किताब में एक ही खंड है और उसका नाम भी एक ही है, इंडियाः आफ्टर गांधी। लेकिन सुविधा को ध्यान में रखते हुए हिंदी में किताब के दो खंड हैं, पहला है भारतःगांधी के बाद और दूसरा है भारतः नेहरू के बाद।

हिंदी में यह किताब प्रवाहमान भाषा में लिखी गई है। एक अनुच्छेद से दूसरे अनुच्छेद तक कथ्य बहता-सा लगता है। भाषा में भी साहित्यक कड़ापन या गाढ़ापन नहीं है। शायद, भारतीय जनसंचार संस्थान से रेडियो टीवी पत्रकारिता का डिप्लोमा कर चुके सुशांत की यह आसान लेकिन असरदार भाषा उनके टेलिविज़न में काम करने के तजुरबे से हासिल हुआ है।

यह किताब उन वाकयो से शुरु होती  जहां से लगता है कि आजाद भारत सांप्रदायिकता , अभावों और गृहयुद्ध जैसे हालातों में बिखर कर रह जाएगा। लेकिन अपने पहले ही अध्याय '...और कारवां बनता गया' से लेखक स्थापित करते हैं कि भारत पहले विचार और बाद में मूर्त रूप में जरूर आया लेकिन यह विचार एक मजबूत लोकतांत्रिक सच्चाई में बदल चुका है।

गुहा ने अपनी किताब में क़द्दावर सूबाई क्षत्रपों के जीवन पर भी रोशनी डाली है। ये ऐेसे इलाकों के नेता थे जो यूरोपीय देशों से भी बड़े थे। वैसे, नेता के तौर पर रामचंद्र गुहा नेहरू के प्रेम में दिखते हैं और पटेल की भी तारीफ की गई है। वैसे हिंदू कोड बिल को लेकर लेखक अंबेदकर के पक्ष में दिखते हैं। फिर भी, लेखक ने पूरी किताब में इतिहासकारनुमा निष्पक्ष नज़रिया बरकरार रखा है , जो उनकी किताब को ऑथेंटिक बनाता है।

अंग्रेजी में गुहा कि भाषा निश्चित रूप से उन लोगों को अपली करेगी जिनके पास अंग्रेजी के संदर्भ होंगे और जिनके पास एक इतिहासबोध होगा, लेकिन सुशांत की हिंदी इस किताब को उन हिंदीवालों के लिए संदर्भ-पुस्तक के तौर पर खड़ी करती है, जो प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करते हों, या फिर आजादी के बाद के भारत की राजनीतिक घटनाओं पर अपनी बारीक निगाह रखना चाहतें हों।

सामान्य लोगों, यानी जिनकी हिंदी की समझ बहुत क्लिष्ट या साहित्यक  किस्म की नहीं है वो भी गांधी के बाद के भारत की घटनाओं पर अपनी समझ पैनी कर सकते हैं। दरअसल, रूपांतरकार ने संस्कृतनिष्ठ हिंदी की बजाय हिंदुस्तानी लिखने को तरज़ीह दी है, जो स्वागतयोग्य है।

हालांकि, कई जगह प्रूफ की गलतियां हैं और हालांकि को हलांकि और ऐसी ही कई हिज्जे की गलतियां है। लेकिन छपाई बढ़िया है और कलेवर भी। अंग्रेजी वाली मूल किताब की तुलना में हिंदी रूपांतर का कवर ज्यादा बेहतर बन पड़ा है और रंग संयोजन भी। उम्मीद है प्रकाशक इस किताब के अगले संस्करण में हिज्जे संबंधी गलतियों को सुधार देंगे।

किताबः भारतःगांधी के बाद
लेखकः रामचंद्र गुहा
हिंदी रूपांतरकारः सुशांत झा
प्रकाशक- पेंग्विन
मूल्यः 399 रुपये (फ्लिपकार्ट और होमशॉप 18 पर 33 फीसद छूट के साथ उपलब्ध)

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

यह पुस्तक पढ़ने की इच्छा है।