कुछ अरसा हुआ मुझे गोवा जाना था। त्रिवेंद्रम राज़धानी में लंबी यात्रा से बोर भी हो रहा था और उसका एक तरह से लुत्फ भी ले रहा था। रत्नागरी के बाद रेल फिर चल पड़ी... राज़धानी एक्सप्रैस भी कोंकण रेल के उस हिस्से का मजा सेती गुजर रही थी। अचानक हुआ ये कि गाड़ी रुक गई।
हमारे अंदर का युवा इंसान और रिपोर्टर जाग गया, हमने गेट से बाहर झांका और गार्ड से पूछताछ की तो पता चला, रेल ट्रैक के बगल में कोई आदमी गिरा पड़ा था। हम भी वहां पहुंच गए, देखा एक बुजुर्ग थे। बाद मे पता चला कि पहले गई गोवा एक्सप्रैस में से गिर पड़े थे। बहरहाल, उन्हे गाड़ी में उठाकर अगले स्टेशन तक खबर पहुंचा दी गई। गोवा एक्सप्रैस उनका इंतजार करती रही थी। बुजुर्गवारक वैसे तो बेहौश थे, लेकिन कोई जानलेवा चोट नहीं आई थी।
मुझे हैरत इस बात की हुई कि राज़धानी जैसी एलीट कही जाने वाली गाड़ी एक आम आदमी के लिए रोक दी गी। ड्राइवर की नज़र की दाद देनी होगी कि उसकी निगाह उन पर पड़ गई। सबसे बडी बात ये कि ऐसा इंसानियत भरा कारनामा दिल्ली जैसे महानगर मंअभी तक देक नहीं पाया। आज याद आई है तो राज़धानी के उस ड्राइवर को सलाम करता हूं।
5 comments:
जी हाँ ऐसे मंजर जब दीखते है तब बेहद तसल्ली होते है ,एक बार एक पुलिस वाले ने हाईवे पर एक्सीडेंट में हमारी सहायता की थी ..जबकि वो ड्यूटी पर नही था .......आम तौर पर पुलिस की छवि के विपरीत
राज़धानी जैसी एलीट कही जाने वाली गाड़ी एक आम आदमी के लिए रोक दी । ड्राइवर की नज़र की दाद देनी होगी कि उसकी निगाह उन पर पड़ गई।
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राज़धानी जैसी एलीट कही जाने वाली गाड़ी एक आम आदमी के लिए रोक दी । ड्राइवर की नज़र की दाद देनी होगी कि उसकी निगाह उन पर पड़ गई।
...उस ड्राइवर को सलाम करता हूं।
वाकई, सराहनीय एवं अनुकरणीय-हमारा भी सलाम पहुँचे उन तक.
धन्य है वह चालाक, इस पोस्ट के लिए आपका भी आभार!
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