सन्नाटा
यह कैसा सन्नाटा है,
जो कान फोड़ता है
यह सन्नाटा भी कितने
सवाल बोलता है
यह कैसा सन्नाटा हैं
जिसमें इतनी आवाज़ें हैं
हर गली हर मोड़ पर
हर शख्स परेशान है
यह सन्नाटा है ऐसा
यह सन्नाटा है ऐसा भेड़िया हो झपटने को तैयार
या ज़मीन हो जाए लाल
यह सन्नाटे की शाम है या
सन्नाटे की भोर है
ये भरी दोपहर है या
रात के अंतिम छोर है
यह कैसा सन्नाटा है जो कान फोड़ता है
यह सन्नाटा भी कितने सवाल बोलता है।
अगिया बैताल भी शांतिदीप के प्रशंसक है। बैताल ने ये कविता कमेंट के ज़रिए भेजी है। जाहिर है, इसे छापना मेरे लिए उतना ही ज़रूरी है। बैताल के राज में उसी से वैर..गुस्ताख हूं तो क्या उतनी हिम्मत थोड़े ही है।
3 comments:
aapki gustakhi ne sannate ko to bhed hi dya badia rachna hai
ye gustakhee to karte hee rahe hain warnaa itnee achhee rachnaa kaise padh paayenge ham.
behad prabhavshali .....achchhi lagi mujhe
Post a Comment