मैं आजकल नरक में हूं। नरक में रहना कोई बहुत पापकर्म रहा नहीं। नरक में भी मौज है। मर्त्यलोक में हमारे कर्मों का लेखा-जोखा करने के बाद और हमारे चरित्र का विश्लेषण करने के बाद चित्रगुप्त जी महाराज ने बहियां जला दीं क्योंकि उन्हें डर है कि इस सेंसरशिप के बगैर आने वाली पीढियां हमारी तरह ही गुस्ताख और बददिमाग़ हो लेंगी।
बहरहाल, मौज में हूं। नरक में जितना फंड बजट के बाद आया था, खर्च नहीं हो पाया। पता नहीं क्यों। जिस कड़ाह में तेल डाल कर हम जैसे पापियों को उबालते-तलते थे, उसकी तली में छेद हो गया है। कड़ाह खरीदा नहीं गया है, एक पुराना कड़ाह कबाड़ में रखा तो है लेकिन न तो कोयला है जलाने के लिए और न ही तेल आ पाया है। इस काम के लिए फंड नहीं था।
जिस आरे से पापियों को चीरा जाता रहा है, उस आरे की दांतें घिस गई हैं। गोया उस आरे से चोट तो लग सकती है लेकिन चीरा नहीं जा सकता। सारे हरबे-हथियार पुराने पड़े हुए हैं, संग्रहालय में रखने लायक हो चुके हैं। हम सारे पापी उस हथियारखाने की ओर से गुज़रते हैं तो सादर थूक समर्पित करते हुए जाते हैं।
नरक में पूछताछ के कमरे, अपराधी के सिर पर जलने वाला जो ढाई सौ वॉट का बिजली का बल्ब लगा होता है, वह फ्यूज़ हो चुका है और चेहरे पर फेंकने के लिए गंदे पानी की सप्लाई भी रोकी हुई है। ऐसे में पापियों से पूछताछ रुकी हुई है। स्टे ऑर्डर लगा हुआ है पूछताछ पर। पापी चक्की भी नहीं पीस पा रहे... चक्की चलाएं तो कैसे, पीसने के लिए अनाज भी नहीं आया।
ये सारा मामला फरवरी के आखिरी दिनों तक ही था। मार्च के शुरुआती दिनों में एडमिन( नरक प्रशासन) की नींद खुली। अतिरिक्त महानिदेशक ने डायरेक्टर से, डायरेक्टर ने जॉइंट डायरेक्टर, जॉइँट डायरेक्टर ने डिपुटी डायरेक्टर से यानी बड़े अधिकारी ने छोटे अधिकारी से और उस अधिकारी ने एकांउंटेंट से जानकारी मांगी।
कहा, फंड खरचना ज़रूरी है वरना अगले वित्त वर्ष में फंड कम हो जाएगा। अब नरक में मच गई अफरातफरी। निविदाएं मंगाई जाने लगीं। अधिकारियों के कमरे में एसी बदल दिए गए। पूरे नर्क प्रशासन भवन की पुताई की गई, साइन बोर्ड, बदल दिए गए। सेंट्रलाइज्ड एसी को दुरुस्त करने के बहाने ढेर खर्च किया गया।
मज़बूत दीवार को तोड़ने में कई मजदूर लगाए गए...फिर उसे तोड़कर कमजोर और डिजाइनदार दीवार बनाई गई। अतिरिक्त महानिदेशक और संयुक्त सचिव को पसंद नहीं आई। नतीजतन दीवार तोड़ दी गई और उसकी जगह नामी कंपनी का बना कांच लगाया गया।
नरक के लॉन में खुदाई करके नर्सरी से मंगाई गई घास रोपी गई। किनारे-किनारे मंहगी इंटें गाड़कर फूलों के पौधे लगाने की जगह बनाई गई। साइकस और मनीप्लांट के मंहगे पौधे मंगाए गए। सात-आठ सौ पौधे, जिनमें पानी न डालने की सख्त हिदायत दी गई है। लोगबाग उसे थूकदान की तरह इस्तेमाल करते हैं।
सभी अधिकारियों के कमरों में नए सोफे लगाए गए और वैसे लोग जो सोफे के काहिल नही उनके कमरे में नए कवर वाले पुराने सोफे डाल दिए गए। फर्श की घिसाई की गई.. मतलब सारे पैसे खर्च हो गए, अब चपरासियों को वेतन नहीं मिला है और कड़ाह वगैरह की खरीद नहीं हो पाई है। पानी की सप्लाई दुरुस्त नहीं हो पाई है, तेल बेचने वाला कोई अधिकारी का रिश्तेदार नहीं निकल पाया सो निविदा भी नहीं निकल पाई। आरा अब भी दांत के इंतजार में है। हरबे हथियारों के ज़रुरत ही नहीं है, उसका इस्तेमाल करना कौन चाहता है।
लब्बोलुआब ये कि अधिकारी वित्त वर्ष खत्म होने से पहले खुले हाथों से फंड की रकम खर्च करने में व्यस्त हैं। यमराज ये देखने में लगे है कि उसकी बाईट किस चैनल पर कितने देर चली। और हम पापी नरक में मज़े ले रहे हैं।
7 comments:
सरकारी विभागों की एक मार्मिक कहानी .
मजे लो भाई....वैसे यमराज होलीडे किस देश में मानते है ?
वैसे तो ये हर सरकारी विभाग की कहानी है। लेकिन हम इसे कुछ ज्यादा ही करीब से देख चुके हैं।
इस नर्क और उसके निवासियों के बारे में -
वो मेरा दोस्त है सारे जहां को है मालूम,
दगा करे वो किसी से तो शर्म आए मुझे।
hehehe creative writing
वाह जी नरक में तो आजकल मज़े चल रहे हैं ....सारी चीजें बेकार हुई
पड़ी हैं ...भाई आपके तो वारे न्यारे हैं.....!!
चलिए क्या फर्क पडता है..चाहे स्वर्ग हो या नर्क...आखिर आनन्द तो ले ही रहे हो न!!
kya baat kahi haimanjit sir yeh kahani to sabhi chennel or sarksri mahekme ki.
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