Tuesday, August 17, 2010

जीवन के चक्रव्यूह में अभिमन्यु हो गया हूं...

याद है पिछली बार हम कब रोए थे?

कभी जिंदगी में ऐसे क्षण आते हैं, जब आप रोना चाहते हैं..बुक्का फाड़कर। लेकिन रो नहीं सकते..क्योंकि आपकी रेपुटेशन ही नहीं है, उदास दिखने की। हर गम में खुश दिखना होता है, जोकर की तरह। मेरे साथ यही मुश्किल है। लाल दंत मंजन छाप दांत दिखाने की ऐसी आदत है कि लोग-बाग ज़रा सीरियस होते ही पूछ बैठते हैं- क्या बात है, उदास हो?

हर बात पर हंसो, तो दोस्त ताना देते हैं मेरी बात पर सीरियस नहीं हो, सीरियसली नहीं ले रहे हो?? क्या किया जाए। मौलिक कैसे बना जाए?

कभी एक शेर सुना था- बहुत संजीदगी भी चूस लेती है लहू दिल का, 
                                   फकत इस वास्ते जिंदादिली से काम लेते हैं...
एक और था ऐसा ही, ..... मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं वाला।

लेकिन, मजाक-मजाक में जिंदगी निकल ली..।  अपने आसपास से गजब के लोगों को जाते देख रहा हूं, मानता हूं मेरी उम्र अभी मरने की नहीं। लेकिन मरने की कोई खास उम्र भी होती है क्या?

लोग धरती की गरमाहट से हवा की सनसनाहट और राजनीति से लेकर पता नही क्या-क्या डिस्कस कर ले रहे हैं। पता नहीं मुझे क्या हो रहा है..। खुद पर से भरोसा उठता जा रहा है..।

कुछ दोस्त भी साथ छोड़ रहे हैं, कुछ ने ताजिंदगी दोस्त बने रहने का वायदा किया था...वह भी छोड़ चले... हमने वायदों पर  यकीन करना छोड़ दिया है।

दिल में कई ऐसी बाते होती हैं, जो किसी को भी नहीं बता सकते बेहद करीबी दोस्तों को भी नहीं। कुछ मुद्दे ऐसे होते हैं जिनपर आप सिर्फ आप खुद से बतिया सकते हैं। ऐसे ही कुछ मुद्दों से घिरा बैठा हूं.. अभिमन्यु की तरह..

3 comments:

Udan Tashtari said...

मेरे साथ यही मुश्किल है- मेरे साथ भी.

डॉ .अनुराग said...

के हर अभिमन्यु का अपना चक्रव्यूह है ....

Anonymous said...

मेरे साथ भी