ये किस्सा मुझसे जुड़ा भी है और नहीं भी। यह सच भी हो सकता है और नहीं भी। यानी यह फिक्शन और नॉन-फिक्शन के बीच की चीज़ है।
कहानी पढ़कर आपसे गुजारिश है कि आप प्रभावित हों और हमारे इस किस्से को किसी पुरस्कार के लिए भेजें। बात उन दिनों की है जब हम छात्रजीवन नामक कथित सुनहरा दौर जी रहे थे। कथित इसलिए कि हमने सिर्फ सुना ही है कि छात्र जीवन सुनहरा होता है, वरना असल में न तो सुनहरा हमें कभी लगा, न हम इसके सुनहरेपन को महसूस कर पाए।
बहरहाल, उन दिनों में जब मैं पढाई करने की बाध्यता और न पढ़ने की इच्छा के बीच झूल रहा था..जैसा कि उन दिनों में आमतौर पर होता है..मेरी मुलाकात एक निहायत ही हसीन लड़की से हो गई।
ये दिन वैसे दिन होते हैं, जब लड़कियां हसीन दिखती हैं( आई मीन नज़र आती हैं) । लड़कियां भी संभवतया लड़कों को ज़हीन मान लेती हैं। उन सुनहरे दिनों के लड़के आम तौर पर या तो ज़हीन होते हैं, या उचक्के.. और उनका उचक्कापन उनके चेहरे से टपकता रहता है। उन उचक्के लड़कों से लड़कियों को हर क़िस्म का डर होता है। जहीन लड़कों से ऐसा डर नहीं होता।
जहीन लड़के अगर ऐसी वैसी कोई हरकत करने - जिसे उचक्के अच्छी भाषा में प्यार जताना- कहते हैं तो प्रायः समझाकर और नहीं तो रिश्ता तोड़ लेने की धमकी देकर लड़कियां जहीनों को काबू में ऱखती हैं। वैसे, उचक्के भी पहले प्यार से ही लड़कियों को पटाने की कोशिश करते हैं, लेकिन न मानने पर सीधी कार्रवाई का विकल्प भी होता है। प्रेम का डायरेक्ट ऐक्शन तरीका.... सारा प्यार एक ही बार में उड़ेल दो.. पर इस तरीके में लात इत्यादि का भय भी होता है। सो यह तरीका तो जहीनों के वश का ही नहीं।
अपने कॉलेज के दिनों में मैं उचक्के वाली कतार में था। दफ्तर के मेरे दोस्त आज भी मुझसे कहते हैं कि तुम बदले नहीं हो। यूं कहें कि मुझपर यह उपाधि लाद दी गई है। इस महान उपाधि के बोझ तले मैं दबा जा रहा हूं।
बहरहाल, कॉलेज के दिनों में मेरे एक गाढ़े दोस्त हुआ करते थे। गलती से लड़कियों के बीच उन्हें ज़हीन मान लिया गया। दोस्त बेसिकली मेरी टाइप के ही थे..फिर भी भ्रम बनाए रखने की खातिर उन्हें पढ़ना वगैरह भी पड़ता था।
अस्तु...उनहीं में एक लड़की थी..नाम नहीं बताउंगा.. बड़े आत्मविश्वास से कह रहा हूं कि मैं उनका बसा-बसाया घर नहीं उजाड़ना चाहता। तो श्रीमान् वाई और मिस एक्स के बीच मेल-मिलाप हो गया। प्रेम प्रकटन हो गया। हम भी खुश, मित्र भी। लड़की राजी। प्यार चल निकला।
जहीन होने का दम भरते हुए हमारे दोस्त हमसे कटने लगे। हमने कहा कोई बात नहीं नया मुल्ला ज्यादा अल्लाह करता है। लेकिन हमारे दोस्त हम जैसे न निकले। मिस एक्स से दो कदम दूर से बाते करते रहे। न स्पर्श, चुंबन तो खैर जाने ही दें...छोटे शहर में जगह का भी टोटा।
खालिस प्लूटोनिक लव।
लेकिन इसे एक तय मपकाम तक पहुंचाने में दोस्त को एक बार फिर हम जैसों की ज़रुरत महसूस हुई। हमने कहा, पहले घर में बता लो। घर में बताया। बेरोज़गार लौंडे का प्रेम। घर में मानो डाका पड़ गया।
वाई की भौजाई से लेकर मां तक का चेहरा लटक गया। चाचा ने बात करना बंद कर दिया। लेकिन मां शायद मां ही होती है, कहने लगी- लड़की की जात क्या है। दोस्त ने बताया, चौधरी...।
अम्मां बोलने लग गईं ये कौन सी जात होती है? जात क्या है जात? ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार, कायस्थ, कोई तो जात होगी? दोस्त लाजवाब, हम भी।
टायटल का पंगा। न उसने बताया था, न हमने पूछा था.. चौधरी तो सभी जातों में होते हैं... ऊपर से लेकर नीचे तक हर जाति में चौधरी हैं। लड़की से पूछना मुनासिब न लगा। एक दिन डरते-डरे पूछ ही डाला। लड़की मुझसे तो खैर थी ही हमारे ज़हीन दोस्त से भी ज्यादा ज़हीन, ज़्यादा बौद्धिक निकली थी.. उसके बाप ने भी कुछ ऐसा ही पूछा था... जाति नही मिली।
मेरे दोस्त वाई के टायटल के भी कई सारे अर्थ निकलते हैं।
तो फाइनली दोस्त ने अपनी मां कीबात मान ली, लड़की ने अपने बाप की बात। वह अपनी जाति सीने से लगाए कहीं ससुराल संवार रही है, वाई दो अलहदा दोस्तों के सामने आंसू टपका कर( मेरे सामने नहीं, ऐसे रोतडू को मैं दो लाफा मार देता हूं) छाती पर पत्थर रख चुका है।
उसमें ट्रेजिडी किंगवाला दिलीपकुमारत्व आ गया है।
लेकिन मैंने सोचा है अपनी अगली पीढ़ी में प्यार करने वाले की जाति नहीं पूछने दूंगा।
1 comment:
Bahut hi achchha leekha hai aapne. College ke samay ki sahi yaad dilaayi hai...
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