Sunday, March 4, 2012

कविताः आदमी होना

ज़मीं भेज देती है,
कोमल पंखों वाली चिड़िया को,
आसमां के आंगन में,
उन्मुक्त उड़ने के लिए।

आसमां भेज देता है,
जमीं के पास,
रुई के फाहों से बादलों को
इधर-उधर भटकने के लिए।

उपवन भेज देता है,
कलियों को.
रंगों भरे फूलों के चमन में,
तितलियों संग से चटखने के लिए,

हम न जाने क्यों
रोकते हैं,
अपने फूल से बच्चों को
पड़ोस के आंगन में खेलने के लिए।

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सारा विश्व उनके खेलने के लिये है, उन्हें खेलने दिया जाये..

Udan Tashtari said...

जबरदस्त....भतीजे....सटीक रचना!!

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर रचना!