Tuesday, May 26, 2015

दो टूकः ताकि बहती रहे गंगा

नरेन्द्र मोदी की सरकार के एक साल पूरे हो रहे हैं और तमाम किस्म की योजनाओं के बीच मेरी दिलचस्पी खासतौर पर गंगा की सफाई से जुड़े नमामि गंगा मिशन पर है। दिलचस्पी इसलिए क्योंकि अव्वल तो पिछले साल इन्हीं दिनों मैं गंगा के किनारे सफाई को लेकर एक वृत्तचित्र की सीरीज़ के सिलसिले में सफ़र कर रहा था, दूसरे, नरेन्द्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान गंगा की सफाई को एक चुनावी मुद्दा बनाने में कामयाबी हासिल की थी।

गंगा सफाई में मेरी दिलचस्पी की तीसरी वजह है, कि इससे पहले गंगा को साफ करने की तमाम योजनाएं और परियोजनाएं नाकाम साबित हो चुकी हैं। केन्द्र और राज्य सरकारों की हजारो करोड़ की रकम गंगा के पानी में उस कथित एक्शन प्लान से जुड़े लोगों ने घुलनशील बना दी। पैसा खर्च हो गया, प्रदूषण 1986 में गंगा एक्शन प्लान शुरू होने के वक्त की स्तर से 2013 तक कम होने 
की बजाय बढ़ ही गया।

अब केन्द्रीय कैबिनेट ने 20 हज़ार करोड़ रूपये की राशि नमामि गंगा परियोजना के लिए मंजूर कर दी है। चार बटालियन ग्रीन टास्क फोर्स की बनाने पर सहमति हो गई है, जो गंगा में प्रदूषण पर नजर रखेगी।

लेकिन मेरा ख्याल है कि गंगा को साफ रखने का एक सरल उपाय है निर्मल गंगा के साथ अविरल गंगा की नीति पर कायम रहने का। हम सिर्फ प्रदूषण की ही बात क्यों करते हैं? हम गंगा को देश की बाकी नदियों की तरह भी नहीं मान सकते क्योंकि गंगा की स्वयंशुद्धि क्षमता दूसरी नदियों की तुलना में अधिक है।

अविरल गंगा सिर्फ आस्था की वजह से भी आवश्यक नहीं है। यह आवश्यक इसलिए भी है क्योंकि अविरलता से ही इसमें घुलनशील ऑक्सीजन (डीओ) और बायो-ऑक्सीजन केमिकल डिमांड (बीओडी) को कायम रखा जा सकता है।

टिहरी के पास भागीरथी पर बड़ा बांध है। यहां बांध के बाद करीब तीन किलोमीटर लंबी सुरंग में नदी का पानी गुजरता है। अब परियोजना से जुड़े इंजीनियरों के लिए सुरंग से गुजरती गंगा को अचंभा और अजूबा नहीं, उन्हें कोई नुकसान भी नजर नहीं आता। पानी तो खैर पानी है, सुरंग से होकर ही गुजरे तो क्या कमी आ जाएगी भला?

लेकिन यकीन मानिए, कमी आ जाती है। ऑक्सीजन की। विज्ञान की सामान्य जानकारी रखने वाला शख्स भी बता सकता है कि किसी भी जल में ऑक्सीजन घुलने के महज दो माध्यम होते हैं। पहला, वातावरण की हवा से उसके संपर्क से ऑक्सीजन पानी में घुलता है। दूसरा, पानी में मौजूद हरित पादपों के प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया से। अब प्रकाश संश्लेषण तभी मुमकिन है जब सूर्य की रोशनी मौजूद हो। अंधेरी सुरंग में न तो सूरज की रौशनी जाती है न ही बाहरी हवा से पानी का संपर्क होता है। ऐसे में गंगा के पानी में ऑक्सीजन घुले भी तो कैसे। इसलिए गंगा को अविरल बनाने का तर्क सही लगता है।

गंगा को निर्मल बनाने में सभी लोग एक सुर में इसमें डाले जाने वाले पूजा के निर्माल्य और चिता जलाकर अस्थियों के प्रवाहित किए जाने को भी दोषी ठहराते हैं। यह बात भी एक हद तक सही है। सिर्फ बनारस में ही, सालाना 33 हजार मुर्दे फूंके जाते हैं और 300 टन अधजला मांस गंगा में प्रवाहित किया जाता है। पूरे देश में अंदाजन, 373 करोड़ लीटर अवशिष्ट सीवेज बिना ट्रीट किए सीधे गंगा में प्रवाहित होता है।

गंगा को साफ करने के बड़ा महत्वपूर्ण कदम उद्योगों के अपशिष्ट को गंगा में गिरने से रोकने का होगा। जब तक, उत्तर काशी से लेकर गंगा सागर तक किसी भी उद्योग का एक लीटर अपशिष्ट गंगा में गिरता है, चिता जलाने या पूजा के निर्माल्य को गंगा में डालने से रोकना अनैतिक होगा। पहले उद्योगों और शहरो का मलजल गिरना बंद हो, बाकी के काम खुद ब खुद रुक जाएंगे।


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