Monday, December 12, 2022

पुस्तक समीक्षाः अजित राय की किताब बॉलीवुड की बुनियाद भारतीय सिनेमा का दस्तावेज है

भारत में सिनेमा पर गंभीर लेखन का चलन कम है. खासकर हिंदी में सिनेमा पर लेखन को ही गंभीर नहीं माना जाता है. लेकिन, कुछ किताबों को संदर्भ पुस्तकों की तरह हमेशा पढ़ा जाएगा और वरिष्ठ सिनेमा और सांस्कृतिक पत्रकार अजित राय की किताब ‘बॉलीवुड की बुनियाद’ उसी पाए की किताब है.

असल में, यह किताब इस बात को पन्ना-दर-पन्ना दर्ज करती जाती है कि आखिर आज हिंदी सिनेमा के जिस साम्राज्य के बारे में बोलकर, कहकर और सुनकर हम छाती फुलाते हैं, असल में उसके पीछे एक खास परिवार का योगदान था. यह बात अहम इसलिए भी है क्योंकि उस उद्योगपति ‘परिवार’ के किसी सदस्य ने इसका कभी कोई श्रेय लेने की कोशिश भी नहीं की.

बॉलीवुड की बुनियाद किताब के बारे में इसके फ्लैप पर बीबीसी के वरिष्ठ पत्रकार रेहान फजल लिखते हैं, “जिसे हम हिंदी सिनेमा का स्वर्ण युग कहते हैं, वह दुनियाभर में हिंदी फिल्मों की वैश्विक सांस्कृतिक यात्रा का भी स्वर्ण युग था. आज हिंदी फिल्में सारी दुनिया में अच्छा बिजनेस कर रही हैं, लेकिन इसकी बुनियाद 1955 में हिंदुजा बंधुओं ने ईरान में रखी थी. ईरान से शुरू हुआ ये सफर देखते-देखते सारी दुनिया में लोकप्रिय हो गया.”

आज हम फिल्मों के बायकॉट के दौर में हैं. और इन्हीं परिस्थितियों में ‘ब्रह्मास्त्र’ नामक फिल्म की पीआर एजेंसियां फ्लॉप के तमगे से बचने के लिए वैश्विक कारोबार का संदर्भ देती हैं. अगर कथित रूप से वैश्विक कारोबार में ब्रह्मास्त्र ने शानदार बिजनेस किया भी है, तो इसका श्रेय बेशक हिंदुआ बंधुओं का जाता है जिन्होंने पचास के दशक में हिंदी फिल्मों के विदेशों में प्रदर्शिन की व्यवस्था की. हैरतअंगेज बात यह भी है कि इन फिल्मों का प्रदर्शन उस ईरान से हुआ, जिसको आज इस्लामिक कट्टरता की भूमि कहा जाता है और जहां कड़ी परंपराओं के खिलाफ महिलाएं आंदोलनरत हैं.

यह किताब अंग्रेजी और हिंदी दोनों में आई है. अजित राय की इस किताब का बढ़िया अंग्रेजी अनुवाद मुर्तजा अली खान ने किया है और अंग्रेजी में इस किताब का नाम हिन्दुजा एंड बॉलीवुड के नाम से किया गया है.

यह किताब सिने-प्रेमियो के साथ ही सिनेमा के शोधार्थियों के लिए भी महत्वपूर्ण है. अजित राय खुद हिंदी के संभवतया इकलौते पत्रकार हैं जो कान फिल्म फेस्टिवल में रिपोर्टिंग के लिए जाते रहे हैं और उसपर लगातार लिखते रहे हैं.

असल में यह किताब हिंदी सिनेमा के वैश्विक विस्तार का दस्तावेज भी है. आज शायद ही किसी को इस बात का यकीन होगा कि करीबन पचास साल पहले राज कपूर की फिल्म ‘संगम’ जब फारसी में डब होकर ईरान में प्रदर्शित हुई तो यह फिल्म तीन साल तक और मिस्र की राजधानी काहिरा में एक साल तक चली.

महबूब ख़ान की ‘मदर इंडिया’ और रमेश सिप्पी की ‘शोले’ भी ईरान में एक साल तक चली. भारतीय उद्योगपति हिन्दुजा बन्धुओं ने 1954-55 से 1984-85 तक करीब बारह सौ हिंदी फिल्मों को दुनियाभर में प्रदर्शित किया और इस तरह बना ‘बॉलीवुड’.

यह किताब कई नई कहानियां और अंतर्कथाएं पेश करती है. एक तरह से यह भारतीय सिनेमा को दुनियाभर में ले जाने के हिंदुजा बंधुओं के उपक्रम का दस्तावेजीकरण है. बेशक, यह किताब अजित राय ने निजी अंदाज में लिखा है. यह पूरी किताब हिंदुजा बंधुओं के सिनेमा के योगदान पर घूमती है. यह कुछ-कुछ अजित राय के निजी संस्मरण जैसा भी है कि कैसे वह कॉन फिल्म फेस्टिवल में हिंदुजा बंधुओं के शाकाहारी डिनर में आमंत्रित किए गए, कैसे ब्रिटेन के सबसे अमीर आदमी रहे हिंदुजा उनके साथ मुंबई की सड़को पर ऑटो रिक्शा में सफर करने से भी नहीं हिचकिचाए.

इस किताब में, राज कपूर की शराबनोशी की लत का भी जिक्र सुनहरे वर्क में लपेटकर किया गया है कि राज कपूर के कैसे तेहरान की थियेटर से जेल की गाड़ी में बिठाकर निकालना पड़ा. और ऐसी एक फिल्म के बार में भी दिलचस्प किस्सा है कि जिसके प्रदर्शन के दौरान सिनेमा हॉल में दर्शक नमाज पढ़ने लगते थे. हिंदी फिल्मों को विदेशों में प्रदर्शित करने से पहले कैसे गोपीचंद हिंदुजा उसे खुद संपादित करवाकर छोटी करवा लेते थे, यह वाकया भी मजेदार है.

किताब फिलहाल हार्ड कवर में है और इसकी कीमत 395 रुपए है. विषय वस्तु के लिहाज से किताब जरूरी और अनछुए विषय पर है लेकिन किताब के अंदर की सजावट और अधिक बेहतर बनाई जा सकती थी. तस्वीरों को लगाते समय सौंदर्यशास्त्र (एस्थेटिक्स) का ख्याल नहीं रखा गया है.

बहरहाल, आज जब हर व्यक्ति सिनेमा के बारे में अपनी राय रखता है और ओटीटी के जमाने में लोगों के पास वैश्विक सिनेमा का कंटेंट उपलब्ध है, बॉलीवुड कैसे, बॉलीवुड बना यह जानना दिलचस्प है.

सिनेमा के विद्यार्थियों के लिए यह किताब अपरिहार्य है.

किताबः बॉलीवुड की बुनियाद

लेखकः अजित राय

प्रकाशकः वाणी प्रकाशन

कीमतः 395 रुपए (हार्ड कवर)





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