अभी-अभी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन गोमोह से ट्रेन पकड़ी है। गोमोह पहले सिर्फ गोमोह था. अब इसके नाम के आगे नेताजी सुभाष का नाम भी है। कारण, नेताजी यहीं से अफ़गानिस्तान के लिए रवाना हुए थे। पुरुषोत्तम एक्सप्रैस हांफती
हुई बढ़ रही है। चिलचिलाती धूप के बीच हरियाली का दीदार होता है। पारसनाथ की
पहाड़ी गुजरती है। जैनों का बेहद प्रसिद्ध तीर्थ है यहां..।
पारसनाथ का इलाका आजकल
लालखंडियों यानी माओवादी आतंकियों या नक्सलियों के गढ़ के रुप में मशहूर हो रहा
है। तीर्थयात्रियों की आमद में हालांकि कमी नही आई है लेकिन आने वाले लोग कई बार
राहजनी के शिकार होते हैं। आतंक का एक डर उनमें थोडा आ तो गया ही है। ये कमजोरों
के लिए लड़ रहे नक्सल आंदोलन का दूसरा चेहरा है।
इस इलाके की वारदातों के बारे में सुनकर मुझे आंदोलन के बदलते
स्वरुप पर माताटीला, पश्चिम बंगाल में नक्सलबाड़ी गांव में अपने तजुरबे की याद आई।
नक्सलबाड़ी भी अब पहले सा कहां रहा...। वहां भी बदलाव ने पैर पसारे है। बहरहाल,
मेरे मन में उमड़-घुमड़ रहे विचारों से बेखबर ट्रेन पटरी पर दौड़ी जा रही है।
पहाड़ी ढालों पर महुआ के पेड़ों ने नए कपड़े पहने लिए है। मुझे नहीं मालूम कि अंग्रेजी के शब्द शेड्स के लिए हिंदी के किन शब्दों का इस्तेमाल होता है। या जो मैं कहना चाहता हूं उनपर हिंदी के शब्दों में विचारों के शेड्स आएंगे या नहीं...।
कोडरमा की घाटी अब समतल खेतों में तब्दील हो गई हैं। मिट्टी
में मैदानी सोफेस्टिकेशन की जगह आदिवासी सौन्दर्य है। एक दम कच्चापन, कंकड़ मिली
खूबसूरती। रंग भी गहरा लाल। इन पेड़ों के बीच बड़ (बरगद) भी है, नीम भी, बेर भी,
बांस की झुरमुटें भी। ताड़ लेकिन बहुसंख्यक हैं।
बांस की झुरमुटें यहां की ज्यादातर आबादी की तरह कुपोषण की
शिकार हैं। पतली शाखाओं वाली, कम लंबी...पत्तीविहीन। नग्न। बरगद दिकुओ (बाहरी) की
तरह हरे-भरे हैं। विशाल। ऐसा हा हाल मवेशियों का भी है। गाय, भैंस बकरियां भी कम
मजबूत, कम ऊंची., कम ताकतवर। इनके हिस्से का सारा चारा कोई और खा जाता है, इनकी
ताकत किसी और के हाथ में है।
मई शुरु ही हुआ है। लेकिन खेतों में सूरज ने सूखे को सूबेदार
की तरह तैनात कर दिया है। घरौंदो की तरह बस्तियों में घर हैं। पॉलीथीन शीट्स और
फूस की छतों वाले घर। घरों के आगे गोयठे (उपले) के भंडार हैं। जलावन के लिए गोयठा
इस्तेमाल करते हैं। उऩका खाद के रुप में प्रयोग अब भी बेहद कम होता है।
5 comments:
मन की यात्रा तो अधूरी रह गयी, गया जो आ गया।
विचारों से लय मिलाती यायावरी
प्रभावशाली प्रस्तुती....
grt...
बहुत खूब...वाह
नीरज
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