फिलहाल तो घना अंधेरा था।
उस अंधेरे में एक खयाल उजाले की तरह अभिजीत के मन में कौंध गई। थोड़ी देर पहले ही मृगांका को देखा था टीवी पर, एंकरिंग करते हुए। उसने आंखों के एपरचर काफी हद तक बढ़ा दिए। एक रौशनी सी मन में बसी थी मृगांका...।
आठ बजने को थे। उसे अब कुछ खोजना था।
सुना है खोजने वाले खुदा को खोज निकालते हैं। अभिजीत को ठेके की तलाश थी...सामने ही सीएफएल की धवल-उज्जवल रोशनी से नहाया पीला बोर्ड था...ठेका विदेशी शराब। उसने एक अद्धा और एक क्वॉर्टर ले लिया। थोड़ी देर में ही जब पीकर निबट गया, और सिगरेट जला ली, तो लगा मृगांका मन से निकल कर सामने खड़ी हो गई है।
कभी-कभी उसे लगता है कि आखिर वो देवदास की तरह क्यों कर रहा है। उसे पता है कि जीवन का अंत होना ही है, हर इंसान का होता है। जीवन में तमाम किस्म की दुश्वारियां झेली थीं उसने, लेकिन अपने दम पर उसने शोहरत भी कमाई और ठीक ठाक रूपया भी।
उंगलियों के बीच फंसी गोल्ड फ्लेक, और हर सेकेंड लड़खडाते कदमों के साथ वह वापस लौट पड़ा। बेला मोड़ की तरफ गया ही नहीं। वापसी में रास्ते का पता ही नहीं चला। कैमरा ट्रैक पर उसके साथ चलता रहा। कभी आगे से तो कभी पीछे से कैमरा उसका पीछा करता रहा। स्साली ये जिंदगी फिल्म जैसी क्यों हो गई है। अच्छा है यहां उसे कोई नहीं पहचानता।
वह वापस स्टेशन पर आ गया। अपने शहर का टिकट लिया। जनरल डब्बे का। रात का सफर होना था..ट्रेन में अभी देर थी।
वह प्लेटफॉर्म पर बैठ गया। चाय वालों की चीखपुकार, मूंगफली वाले...झालमुड़ी, केले वाले, खीरे वाले...और न जाने क्या-क्या..।
एक चाय वाला बगल से निकला. चिल्लाता हुआ,..चाय चाय...
चाय...पिओगी
चाय?
कहां
अरे कहां क्या, नीचे ढाबे वाले के यहां
ढाबे वाले के यहां..ओह गॉड उसके गिलास देखें हैं, पता नहीं कब धोए गए होगे। गंदे होते हैं।
अरे चलो तो सही
अभिजीत से हालांकि मृगांका का परिचय अभी बहुत पुराना नहीं था, लेकिन परिचय तो ऐसा लगता था कि पता नहीं..जाने कब से एक दूसरे को जानते थे। भाषा आंखों की थी। इस भाषा में आवेग होता है, इसमें कथ्य होता है, इसमें कहानी होती है...लेकिन शब्द नहीं होते।
ये सन्नाटे का संगीत होता है।
नीचे सप्तपर्णी के नीचे अभिजीत मृगांका को लेकर पहुंचा। चाय वाले ने नीचे पेड़ के तले ही दुकान लगा रखी थी। कुछ खाने लायक सामान भी...मृगांका ने कह ही दिया, देखा, कितना गंदा है सब। अनहाइजेनिक।
लेकिन अभिजीत को देखते ही चाय वाला उठ खड़ा हुआ, आइए भैया। का पिलाबें...स्पेशल?
अभिजीत के तेवरों में बदतमीजी वाली दबंगई हुआ करती थी। ऐसा नहीं था कि इस दबंगई से मृगांका को बुरा लगता हो। अभिजीत का ऐसा होना, मुंहफट, बदतमीज होना..कहीं न कहीं अच्छा लगता था उसे।
मृगांका बहुत सलीकेदार थी। सूरजमुखी सी। अभिजीत तो फुटपाथ में लगने वाले पत्थर के बड़े टुकड़े पर ही बैठ गया। सप्तपर्णी के पेड़ से टेक लगाकर। सप्तपर्णी के इस पेड़ को अभिजीत बहुत पसंद करता था। उसे पेड़ों, पौधों से बहुत प्रेम था। मृगांका को दलितों की चिंता थी, मृगांका को जानवरों से प्रेम था, मृगांका को बच्चे अच्छे लगते थे।
अभिजीत को बच्चों से डर लगता था और जानवरों से भी।
मृगांका ने कहा, अभि मैं चाय नहीं पीती।
अबिजीत ने कहा, मैंने कब कहा कि चाय की आदत बना लो। एक बार एक कप पी लोगी तो काली नहीं हो जाओगी। ये लो...अब अभिजीत ने चाय बढ़ा दी थी तो मृगांका सीधे मना नहीं कर पाई। लेकिन गिलास गंदा होगा, ये विचार उसके दिमाग से बाहर नहीं निकल पा रहा था।
चाय के दौरान अभिजीत उसे कुछ न कुछ बताता रहा। मृगांका सुन नहीं रही थी...वह देख रही थी। अभिजीत की आंखों में मासूमियत थी, उसकी आंखों के नीचे की लाईन्स भी कायदे से पढ़ लीं मृगांका ने। अभिजीत के गाल पर, तिल है। कनपटी पर भी है और उसकी भौंहे....कमानी की तरह खिंची हुई।
अभिजीत गोरा नहीं है, वह काला भी नहीं है। कनपटी के किनार पके बाल झांक रहे हैं। उसके कान बहुत छोटे हैं. मृगांका की मां कहती है कि जिस आदमी के कान छोटे हों, उसकी उमर ज्यादा नहीं होती।
नहीं, इसे जीना होगा। मृगांका ने दोहराया। तबतक पता नहीं कितने पुराण बांच गया था अभिजीत। अभिजीत चाय खत्म कर चुका था...। उठ खड़ा हुआ। मृगांका का मन नहीं था उठने का। अभिजीत ने सिगरेट सुलगा ली। चाय वाले को इशारा किया कि पैसे खाते में जोड़ ले और आगे बढ़ गया।
अब...अब क्या करना है, अभि।
अभिजीत पार्किंग की तरफ बढ़ रहा था। बाईक लेने, जरा ग्रेटर नोएडा तक जाना था।
मुझे रिपोर्ट फाइल करनी है--मृगांका ने कहा।
दिल्ली, आज की शाम
मृगांका ने डायरी के पन्ने पलटने शुरु कर दिए। फिर उसी पेज पर आकर रूक गई। उसी दिन देर रात उसने लिखा था...आज भी याद है उसे। वाकया।
मेरा दिल तुम्हे नकारना चाहता था, लेकिन मैं एक अजनबी के पाश में बंधती चली गई। अजनबी!!! वह अजनबी नहीं। विश्वास करो डायरी...मैं उसके चेहरे की हर लकीर को न जाने कब से जानती हूं। उसकी हर कीमत को...उसकी हंसी की प्रतिध्वनियां हर वक्त सुनाई देती हैं...उससे मिलने से सदियों पहले से मेरी उससे पहचान है...वो अजनबी नहीं है।
दिल्ली, उस रोज
न्यज़ रूम में अचानक सन्नाटा सा पसर गया। कॉपी छोड़ने का वक्त नजदीक था, सीधे डेस्क पर फोन आया था कि अभिजीत का एक्सीडेंट हो गया है।
समाचार संपादक चिल्लाए, स्साले को इतना मना करता हूं कि इतनी ज्यादा न पिए। शाम से ही शरु..इसी ने ठोंकी होगी।
मृगांका, ठिठक गई। उसकी रिपोर्ट में फाइनल टच देना बाकी था। वह उठ खड़ी हुई। इंचार्ज ने पूछा, किस अस्पताल में है।
सर ट्रेस कर रहे हैं। पता नहीं। मयूर विहार के आसपास कहीं एक्सीडेंट हुआ है। हेल्थ रिपोर्टर से पूछो।
जब तक सिद्धांत, रवि और बाकी के लोग अभिजीत का पता लगाने में मशगूल रहे...मृगांका भयभीत हिरनी से इधर से उधर घूमती रही। पहले तो लगा कि मीनाक्षी अस्पताल ले गए हैं, फिर अचानक फोन आया कि मेट्रो अस्पताल में हैं। होश में नहीं है।
मृगांका हड़बड़ सी गई थी।
सर मैं जाऊं?
तुम...
हां सर रवि भैया को लेकर जाती हूं।
ओके बाईक से मत जाना, गाड़ी ले लो।
जब अस्पताल पहुंचे, तो रात के साढे दस से ज्यादा हो चुके थे। अभिजीत को सीटी स्कैन के लिए ले जा रहे थे। एक्सरे रिपोर्ट आ गई थी। शरीर के सारे महकमे दुरुस्त थे, कहीं टूट फूट नहीं हुई थी। लेकिन सिर के अंदर की चोट का पता लगाने के लिए सीटी स्कैन करना जरूरी था।
जब अभिजीत को स्ट्रैचर पर वॉर्ड में वापस लाया गया तो मृगांका की आंखों में से बांध टूट पड़ा। रवि देखता रहा गया। अभिजीत को होश आ गया था।
मृगांका ने एक दम से जोर-जोर से रोना शुरु कर दिया था। तेज़-तेज़। अभिजीत हैरान रह गया, क्या हुआ मृगांका। रवि ने भी रोकना चाहा। लेकिन नदी कहां रुकती है। अभिजीत बेदम सा पड़ा था...उसी पर लदकर उसका सीना भिंगोने लगी मृगांका।
कुछ हो जाता तुम्हें तो....।
तो...??
तो मैं मर जाती....
मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं, अभि...तुम देख नहीं सकते क्या...क्यों ऐसा करते हो...क्यों पीते हो इतना।
अरे किसने कहा कि मैंने पी रखी है
डॉक्टर..
नहीं, इनका अल्कोहल टेस्ट कर चुके हैं, इन्होंने कम से कम आज तो शराब नहीं पी है। डॉक्टर प्रेम के इज़हार का गवाह था। मुस्करा रहा था। डॉक्टरों के पास ऐसे मौको पर मुस्कुराने के मौके कम ही आते हैं।
अभिजीत के दोनों हाथ उठे और मृगांका की पीठ पर चले गए। पगली, मैं तुम्हारी यादों में ही खोया था, पता नहीं कब कह पता अपने मुंह से...हहहह...अच्छा हुआ कि एक्सीडेंट हो गया।
अभि, तुम भी ना....मृगांका आंसू भरी आंखों से हंसती हुई उठ खड़ी हुई।
...क्रमशः
उस अंधेरे में एक खयाल उजाले की तरह अभिजीत के मन में कौंध गई। थोड़ी देर पहले ही मृगांका को देखा था टीवी पर, एंकरिंग करते हुए। उसने आंखों के एपरचर काफी हद तक बढ़ा दिए। एक रौशनी सी मन में बसी थी मृगांका...।
आठ बजने को थे। उसे अब कुछ खोजना था।
सुना है खोजने वाले खुदा को खोज निकालते हैं। अभिजीत को ठेके की तलाश थी...सामने ही सीएफएल की धवल-उज्जवल रोशनी से नहाया पीला बोर्ड था...ठेका विदेशी शराब। उसने एक अद्धा और एक क्वॉर्टर ले लिया। थोड़ी देर में ही जब पीकर निबट गया, और सिगरेट जला ली, तो लगा मृगांका मन से निकल कर सामने खड़ी हो गई है।
कभी-कभी उसे लगता है कि आखिर वो देवदास की तरह क्यों कर रहा है। उसे पता है कि जीवन का अंत होना ही है, हर इंसान का होता है। जीवन में तमाम किस्म की दुश्वारियां झेली थीं उसने, लेकिन अपने दम पर उसने शोहरत भी कमाई और ठीक ठाक रूपया भी।
उंगलियों के बीच फंसी गोल्ड फ्लेक, और हर सेकेंड लड़खडाते कदमों के साथ वह वापस लौट पड़ा। बेला मोड़ की तरफ गया ही नहीं। वापसी में रास्ते का पता ही नहीं चला। कैमरा ट्रैक पर उसके साथ चलता रहा। कभी आगे से तो कभी पीछे से कैमरा उसका पीछा करता रहा। स्साली ये जिंदगी फिल्म जैसी क्यों हो गई है। अच्छा है यहां उसे कोई नहीं पहचानता।
वह वापस स्टेशन पर आ गया। अपने शहर का टिकट लिया। जनरल डब्बे का। रात का सफर होना था..ट्रेन में अभी देर थी।
वह प्लेटफॉर्म पर बैठ गया। चाय वालों की चीखपुकार, मूंगफली वाले...झालमुड़ी, केले वाले, खीरे वाले...और न जाने क्या-क्या..।
एक चाय वाला बगल से निकला. चिल्लाता हुआ,..चाय चाय...
चाय...पिओगी
चाय?
कहां
अरे कहां क्या, नीचे ढाबे वाले के यहां
ढाबे वाले के यहां..ओह गॉड उसके गिलास देखें हैं, पता नहीं कब धोए गए होगे। गंदे होते हैं।
अरे चलो तो सही
अभिजीत से हालांकि मृगांका का परिचय अभी बहुत पुराना नहीं था, लेकिन परिचय तो ऐसा लगता था कि पता नहीं..जाने कब से एक दूसरे को जानते थे। भाषा आंखों की थी। इस भाषा में आवेग होता है, इसमें कथ्य होता है, इसमें कहानी होती है...लेकिन शब्द नहीं होते।
ये सन्नाटे का संगीत होता है।
नीचे सप्तपर्णी के नीचे अभिजीत मृगांका को लेकर पहुंचा। चाय वाले ने नीचे पेड़ के तले ही दुकान लगा रखी थी। कुछ खाने लायक सामान भी...मृगांका ने कह ही दिया, देखा, कितना गंदा है सब। अनहाइजेनिक।
लेकिन अभिजीत को देखते ही चाय वाला उठ खड़ा हुआ, आइए भैया। का पिलाबें...स्पेशल?
अभिजीत के तेवरों में बदतमीजी वाली दबंगई हुआ करती थी। ऐसा नहीं था कि इस दबंगई से मृगांका को बुरा लगता हो। अभिजीत का ऐसा होना, मुंहफट, बदतमीज होना..कहीं न कहीं अच्छा लगता था उसे।
मृगांका बहुत सलीकेदार थी। सूरजमुखी सी। अभिजीत तो फुटपाथ में लगने वाले पत्थर के बड़े टुकड़े पर ही बैठ गया। सप्तपर्णी के पेड़ से टेक लगाकर। सप्तपर्णी के इस पेड़ को अभिजीत बहुत पसंद करता था। उसे पेड़ों, पौधों से बहुत प्रेम था। मृगांका को दलितों की चिंता थी, मृगांका को जानवरों से प्रेम था, मृगांका को बच्चे अच्छे लगते थे।
अभिजीत को बच्चों से डर लगता था और जानवरों से भी।
मृगांका ने कहा, अभि मैं चाय नहीं पीती।
अबिजीत ने कहा, मैंने कब कहा कि चाय की आदत बना लो। एक बार एक कप पी लोगी तो काली नहीं हो जाओगी। ये लो...अब अभिजीत ने चाय बढ़ा दी थी तो मृगांका सीधे मना नहीं कर पाई। लेकिन गिलास गंदा होगा, ये विचार उसके दिमाग से बाहर नहीं निकल पा रहा था।
चाय के दौरान अभिजीत उसे कुछ न कुछ बताता रहा। मृगांका सुन नहीं रही थी...वह देख रही थी। अभिजीत की आंखों में मासूमियत थी, उसकी आंखों के नीचे की लाईन्स भी कायदे से पढ़ लीं मृगांका ने। अभिजीत के गाल पर, तिल है। कनपटी पर भी है और उसकी भौंहे....कमानी की तरह खिंची हुई।
अभिजीत गोरा नहीं है, वह काला भी नहीं है। कनपटी के किनार पके बाल झांक रहे हैं। उसके कान बहुत छोटे हैं. मृगांका की मां कहती है कि जिस आदमी के कान छोटे हों, उसकी उमर ज्यादा नहीं होती।
नहीं, इसे जीना होगा। मृगांका ने दोहराया। तबतक पता नहीं कितने पुराण बांच गया था अभिजीत। अभिजीत चाय खत्म कर चुका था...। उठ खड़ा हुआ। मृगांका का मन नहीं था उठने का। अभिजीत ने सिगरेट सुलगा ली। चाय वाले को इशारा किया कि पैसे खाते में जोड़ ले और आगे बढ़ गया।
अब...अब क्या करना है, अभि।
अभिजीत पार्किंग की तरफ बढ़ रहा था। बाईक लेने, जरा ग्रेटर नोएडा तक जाना था।
मुझे रिपोर्ट फाइल करनी है--मृगांका ने कहा।
दिल्ली, आज की शाम
मृगांका ने डायरी के पन्ने पलटने शुरु कर दिए। फिर उसी पेज पर आकर रूक गई। उसी दिन देर रात उसने लिखा था...आज भी याद है उसे। वाकया।
मेरा दिल तुम्हे नकारना चाहता था, लेकिन मैं एक अजनबी के पाश में बंधती चली गई। अजनबी!!! वह अजनबी नहीं। विश्वास करो डायरी...मैं उसके चेहरे की हर लकीर को न जाने कब से जानती हूं। उसकी हर कीमत को...उसकी हंसी की प्रतिध्वनियां हर वक्त सुनाई देती हैं...उससे मिलने से सदियों पहले से मेरी उससे पहचान है...वो अजनबी नहीं है।
दिल्ली, उस रोज
न्यज़ रूम में अचानक सन्नाटा सा पसर गया। कॉपी छोड़ने का वक्त नजदीक था, सीधे डेस्क पर फोन आया था कि अभिजीत का एक्सीडेंट हो गया है।
समाचार संपादक चिल्लाए, स्साले को इतना मना करता हूं कि इतनी ज्यादा न पिए। शाम से ही शरु..इसी ने ठोंकी होगी।
मृगांका, ठिठक गई। उसकी रिपोर्ट में फाइनल टच देना बाकी था। वह उठ खड़ी हुई। इंचार्ज ने पूछा, किस अस्पताल में है।
सर ट्रेस कर रहे हैं। पता नहीं। मयूर विहार के आसपास कहीं एक्सीडेंट हुआ है। हेल्थ रिपोर्टर से पूछो।
जब तक सिद्धांत, रवि और बाकी के लोग अभिजीत का पता लगाने में मशगूल रहे...मृगांका भयभीत हिरनी से इधर से उधर घूमती रही। पहले तो लगा कि मीनाक्षी अस्पताल ले गए हैं, फिर अचानक फोन आया कि मेट्रो अस्पताल में हैं। होश में नहीं है।
मृगांका हड़बड़ सी गई थी।
सर मैं जाऊं?
तुम...
हां सर रवि भैया को लेकर जाती हूं।
ओके बाईक से मत जाना, गाड़ी ले लो।
जब अस्पताल पहुंचे, तो रात के साढे दस से ज्यादा हो चुके थे। अभिजीत को सीटी स्कैन के लिए ले जा रहे थे। एक्सरे रिपोर्ट आ गई थी। शरीर के सारे महकमे दुरुस्त थे, कहीं टूट फूट नहीं हुई थी। लेकिन सिर के अंदर की चोट का पता लगाने के लिए सीटी स्कैन करना जरूरी था।
जब अभिजीत को स्ट्रैचर पर वॉर्ड में वापस लाया गया तो मृगांका की आंखों में से बांध टूट पड़ा। रवि देखता रहा गया। अभिजीत को होश आ गया था।
मृगांका ने एक दम से जोर-जोर से रोना शुरु कर दिया था। तेज़-तेज़। अभिजीत हैरान रह गया, क्या हुआ मृगांका। रवि ने भी रोकना चाहा। लेकिन नदी कहां रुकती है। अभिजीत बेदम सा पड़ा था...उसी पर लदकर उसका सीना भिंगोने लगी मृगांका।
कुछ हो जाता तुम्हें तो....।
तो...??
तो मैं मर जाती....
मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं, अभि...तुम देख नहीं सकते क्या...क्यों ऐसा करते हो...क्यों पीते हो इतना।
अरे किसने कहा कि मैंने पी रखी है
डॉक्टर..
नहीं, इनका अल्कोहल टेस्ट कर चुके हैं, इन्होंने कम से कम आज तो शराब नहीं पी है। डॉक्टर प्रेम के इज़हार का गवाह था। मुस्करा रहा था। डॉक्टरों के पास ऐसे मौको पर मुस्कुराने के मौके कम ही आते हैं।
अभिजीत के दोनों हाथ उठे और मृगांका की पीठ पर चले गए। पगली, मैं तुम्हारी यादों में ही खोया था, पता नहीं कब कह पता अपने मुंह से...हहहह...अच्छा हुआ कि एक्सीडेंट हो गया।
अभि, तुम भी ना....मृगांका आंसू भरी आंखों से हंसती हुई उठ खड़ी हुई।
...क्रमशः
4 comments:
bahut achhi katha gadh rahe hain manjit jee.......bahut baandh rakha hai kahaani ne...
:) अब लग रहा है - ये प्यार एकतरफा नहीं है.
हां ये प्रेम एकतरफा नहीं है......आपकी कहानी धारावाहिक की तर्ज पर ट्वीस्ट ले रही है....बेहतरीन
chumma le lene ka man kar raha hai apka
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