...सुनो मैंने तुम्हें सपने में देखा था।
झूठ..।
क़सम से।
नहीं..। नहीं बोलने की मृगांका की अदा गजब थी। अभिजीत अगर कोई शहंशाह होता तो इस अदा पर मोतियों की बौछार कर देता।
..अच्छा तो फिर बताओ, सपने में मैने क्या किया...। फिर शरारती मुस्कुराहट। अभिजीत मौन रह गया। उसके भदेस संस्कार उसे वह सब बताने से रोक रहे थे। लेकिन, अभिजीत जानता था वह कोई फ्रायडियन सपना नहीं था। उसमें शारीरिक उड़ाने नहीं थी...सच तो यह था कि जिसतरह दारू पीकर अभिजीत गुमसुम हो जाता था, वैसे ही सपने में भी चुप्पा ही था।
अभिजीत को लगा था, कि वह हवाई जहाज में उड़ रहा है। और उसे किसी ने वहां से फेंक दिया हो। मानो वह स्काई डाइविंग कर रहा हो।
ऊंचाइयों से गिरना तकलीफदेह होता है। सपनों का टूटना, उससे भी ज्यादा।
सीन चेंज, पता नहीं कहां, पता नहीं कौन से वक्त, पता नहीं किस तरह
अभिजीत इंतजार कर रहा है। मृगांका ने मिलने का वायदा किया है। जनपथ सीसीडी। एक घंटा लेट। आम तौर पर अभिजीत मृगांका के आए बगैर कॉफी नहीं पीता। सो, वायदे पर डटते हुए सात सिगरेंटे पी जा चुकी हैं। अकेले खाली बैठे देखकर, और सिगरेटें फूंकते देख, अगल बगल की मेज पर बैठे जोड़ो को यकीन हो गया, इसकी जोड़ीदार आई नहीं अभी तक।
घंटा भर बाद, जोड़ीदार आई। सोलमेट।
अभिजीत के पसंदीदा कपड़ो में आई थी, सो अभिजीत ने बिना भौं टेढ़ी किए, उसका मुस्कुराहट से स्वागत किया। उसके होंठ, उसके गाल, उसके बाल...अभिजीत को लगा, दुनिया को ठेंगे पर रखकर अपने हाथों में रख ले।
उसी दिन मृगांका ने उसे किस किया था। किस का ये किस्सा छप गया था अभिजीत के दिलोदिमाग में।
वह दृश्य, वो अहसास, वो खुशबू..अभिजीत के दिमाग को उजाले में रखते हैं। अभिजीत महकता रहता है इससे...अंधियारा गहराने लगा था।
अंधियारे से उजाले फूटने लगे...अभिजीत ने आंखे खोली तो यही उजाला चौंधिया गया उसको।
उसने देखा सामने लोगों की भीड़ जमा थी, महंत जी और गांव के बहुत से लोग। क्या हो गया था बाबू साहब आपको. महंत जी ने पूछा।
कुछ नहीं।
मिर्गी वगैरह है क्या। गांव के किसी नौजवान ने पूछा।
नहीं बस यूं ही चक्कर सा आ गया था।
अच्छा, अब ठीक तो हैं, तो बताइए, सबको यहां बुलाया क्यों है?
दिल्ली, सुबह साढे नौ बजे, राम मनोहर लोहिया अस्पताल
मृगांका रात भर सो नहीं पाई थी। रात भर वो आंख उसे परेशान करती रही। क्या हुआ अभिजीत को..कहां है अभिजीत। नहीं, वो अभिजीत नहीं हो सकता। ड्राइव करती हुई वो सीधे अस्पताल के गेट के पास गाड़ी पार्क करती हुई अंदर को भागी।
मेडिकल सुपरिटेंडेंट उसका पहचान का था। डॉक्साब, मुझे मरने वालो की सूची चाहिए।
वो तो आपके रिपोर्टर को दे चुके है, सारे चैनल वालों को थोड़ी ही देर पहले दिया है। डॉक्टर ने जवाब दिया।
क्या मैं सबके चेहरे देख सकती हूं, घायलों से मिल सकती हूं।
हां, हां क्यों नहीं। लेकिन बुरी तरह क्षतिग्रस्त चेहरे..हम इजाज़त नहीं देंगे। थोड़ी ही देर में उनका पोस्टमार्टम भी तो होगा।
नहीं, मुझे सही-सलामत लोग ही दिखाएं। प्लीज...
लाशों की इस भीड़ में उसने देखा...वो नहीं था। वो आंखे, जो अभिजीत-सी थीं, किसी और अभागे की थी। मृगांका को थोड़ी राहत मिली। बाहर आकर वो अहाते के पेड़ से बाई तरफ शीतल पेयों की दुकान की तरफ गई...उसे बड़ी जोर की प्यास लग आई थी।
अचानक उसे लगा उसने किसी जाने-पहचाने चेहरे को देखा था....वह चिल्लाई.
प्रशांत...।।
....जारी
झूठ..।
क़सम से।
नहीं..। नहीं बोलने की मृगांका की अदा गजब थी। अभिजीत अगर कोई शहंशाह होता तो इस अदा पर मोतियों की बौछार कर देता।
..अच्छा तो फिर बताओ, सपने में मैने क्या किया...। फिर शरारती मुस्कुराहट। अभिजीत मौन रह गया। उसके भदेस संस्कार उसे वह सब बताने से रोक रहे थे। लेकिन, अभिजीत जानता था वह कोई फ्रायडियन सपना नहीं था। उसमें शारीरिक उड़ाने नहीं थी...सच तो यह था कि जिसतरह दारू पीकर अभिजीत गुमसुम हो जाता था, वैसे ही सपने में भी चुप्पा ही था।
अभिजीत को लगा था, कि वह हवाई जहाज में उड़ रहा है। और उसे किसी ने वहां से फेंक दिया हो। मानो वह स्काई डाइविंग कर रहा हो।
ऊंचाइयों से गिरना तकलीफदेह होता है। सपनों का टूटना, उससे भी ज्यादा।
सीन चेंज, पता नहीं कहां, पता नहीं कौन से वक्त, पता नहीं किस तरह
अभिजीत इंतजार कर रहा है। मृगांका ने मिलने का वायदा किया है। जनपथ सीसीडी। एक घंटा लेट। आम तौर पर अभिजीत मृगांका के आए बगैर कॉफी नहीं पीता। सो, वायदे पर डटते हुए सात सिगरेंटे पी जा चुकी हैं। अकेले खाली बैठे देखकर, और सिगरेटें फूंकते देख, अगल बगल की मेज पर बैठे जोड़ो को यकीन हो गया, इसकी जोड़ीदार आई नहीं अभी तक।
घंटा भर बाद, जोड़ीदार आई। सोलमेट।
अभिजीत के पसंदीदा कपड़ो में आई थी, सो अभिजीत ने बिना भौं टेढ़ी किए, उसका मुस्कुराहट से स्वागत किया। उसके होंठ, उसके गाल, उसके बाल...अभिजीत को लगा, दुनिया को ठेंगे पर रखकर अपने हाथों में रख ले।
उसी दिन मृगांका ने उसे किस किया था। किस का ये किस्सा छप गया था अभिजीत के दिलोदिमाग में।
वह दृश्य, वो अहसास, वो खुशबू..अभिजीत के दिमाग को उजाले में रखते हैं। अभिजीत महकता रहता है इससे...अंधियारा गहराने लगा था।
अंधियारे से उजाले फूटने लगे...अभिजीत ने आंखे खोली तो यही उजाला चौंधिया गया उसको।
उसने देखा सामने लोगों की भीड़ जमा थी, महंत जी और गांव के बहुत से लोग। क्या हो गया था बाबू साहब आपको. महंत जी ने पूछा।
कुछ नहीं।
मिर्गी वगैरह है क्या। गांव के किसी नौजवान ने पूछा।
नहीं बस यूं ही चक्कर सा आ गया था।
अच्छा, अब ठीक तो हैं, तो बताइए, सबको यहां बुलाया क्यों है?
दिल्ली, सुबह साढे नौ बजे, राम मनोहर लोहिया अस्पताल
मृगांका रात भर सो नहीं पाई थी। रात भर वो आंख उसे परेशान करती रही। क्या हुआ अभिजीत को..कहां है अभिजीत। नहीं, वो अभिजीत नहीं हो सकता। ड्राइव करती हुई वो सीधे अस्पताल के गेट के पास गाड़ी पार्क करती हुई अंदर को भागी।
मेडिकल सुपरिटेंडेंट उसका पहचान का था। डॉक्साब, मुझे मरने वालो की सूची चाहिए।
वो तो आपके रिपोर्टर को दे चुके है, सारे चैनल वालों को थोड़ी ही देर पहले दिया है। डॉक्टर ने जवाब दिया।
क्या मैं सबके चेहरे देख सकती हूं, घायलों से मिल सकती हूं।
हां, हां क्यों नहीं। लेकिन बुरी तरह क्षतिग्रस्त चेहरे..हम इजाज़त नहीं देंगे। थोड़ी ही देर में उनका पोस्टमार्टम भी तो होगा।
नहीं, मुझे सही-सलामत लोग ही दिखाएं। प्लीज...
लाशों की इस भीड़ में उसने देखा...वो नहीं था। वो आंखे, जो अभिजीत-सी थीं, किसी और अभागे की थी। मृगांका को थोड़ी राहत मिली। बाहर आकर वो अहाते के पेड़ से बाई तरफ शीतल पेयों की दुकान की तरफ गई...उसे बड़ी जोर की प्यास लग आई थी।
अचानक उसे लगा उसने किसी जाने-पहचाने चेहरे को देखा था....वह चिल्लाई.
प्रशांत...।।
....जारी
1 comment:
गलत जगह लाकर रोक दिया अब इंतज़ार ………
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