दुर्गम वनों और ऊंचे पर्वतों को जीतते हुए,
जब तुम अंतिम ऊंचाई को भी जीत लोगे,
जब तुम्हें लगेगा कि कोई अंतर नहीं बचा अब,
तुममें और उन पत्थरों की कठोरता में,
जिन्हें तुमने जीता है।
जब तुम अपने मस्तक पर बर्फ़ का पहला तूफ़ान झेलोगे,
और कांपोगे नहीं...
जब तुम पाओगे कि कोई फ़र्क नहीं
सब कुछ जीत लेने में..
और अंत तक हिम्मत न हारने में...
---कुंवर बेचैन
जब तुम अंतिम ऊंचाई को भी जीत लोगे,
जब तुम्हें लगेगा कि कोई अंतर नहीं बचा अब,
तुममें और उन पत्थरों की कठोरता में,
जिन्हें तुमने जीता है।
जब तुम अपने मस्तक पर बर्फ़ का पहला तूफ़ान झेलोगे,
और कांपोगे नहीं...
जब तुम पाओगे कि कोई फ़र्क नहीं
सब कुछ जीत लेने में..
और अंत तक हिम्मत न हारने में...
---कुंवर बेचैन
2 comments:
बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति
बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
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