एक नज़्म मेरी चोरी कर ली कल रात किसी ने
यहीं पड़ी थी बालकनी में
गोल तिपाही के ऊपर थी
व्हिस्की वाले ग्लास के नीचे रखी थी
नज़्म के हल्के हल्के सिप मैं
घोल रहा था होठों में
शायद कोई फोन आया था
अन्दर जाकर लौटा तो फिर नज़्म वहां से गायब थी
अब्र के ऊपर नीचे देखा
सूट शफ़क़ की ज़ेब टटोली
झांक के देखा पार उफ़क़ के
कहीं नज़र ना आयी वो नज़्म मुझे
आधी रात आवाज़ सुनी तो उठ के देखा
टांग पे टांग रख के आकाश में
चांद तरन्नुम में पढ़ पढ़ के
दुनिया भर को अपनी कह के
नज़्म सुनाने बैठा था
10 comments:
गुलजार साब,,,,,,कुछ नहीं बस वह नज्म आपको कोई लौटा दे। सोचता हूं कितना शातिर होगा जो व्हिस्की वाले ग्लास के नीचे रखी चीज को उठा लिया।
टांग पे टांग रख के आकाश में
चांद तरन्नुम में पढ़ पढ़ के
दुनिया भर को अपनी कह के
नज़्म सुनाने बैठा था pyaara ahsaas hai
टांग पे टांग रख के आकाश में
चांद तरन्नुम में पढ़ पढ़ के
दुनिया भर को अपनी कह के
नज़्म सुनाने बैठा था
waah bahut hi sunder
जिसे ढूंडा इधर -उधर ,उड़ा ले गया हिमकर उधर .
बहुत सुन्दर
गुलज़ार की ये बेहतरीन नज़्म पढ़वाने के लिए शुक्रिया
बेहतरीन नज़्म शुक्रिया
दूर की कौडी लाये हो ......गजब !स्रोत कौन सा है....
आधी रात आवाज़ सुनी तो उठ के देखा
टांग पे टांग रख के आकाश में
चांद तरन्नुम में पढ़ पढ़ के
दुनिया भर को अपनी कह के
नज़्म सुनाने बैठा था
भई वाह! क्या कल्पना है। बहुत खूब। बधाई स्वीकारें।
awesome..bahut achha choot gya aaj se pahle padna..
एक नज़्म मेरी चोरी कर ली कल रात किसी ने
यहीं पड़ी थी बालकनी में
गोल तिपाही के ऊपर थी
व्हिस्की वाले ग्लास के नीचे रखी थी
नज़्म के हल्के हल्के सिप मैं
घोल रहा था होठों में
शायद कोई फोन आया था ...बेहतरीन नज़्म
Post a Comment